Monday 21 March 2016

Shaheed-e-Azam Bhagat Singh ( भगत सिंह ) /शहीद दिवस

                                                           शहीद दिवस    


Bhagat Singh,                          Sukhdev,                              Rajguru


23 मार्च भारत में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। 23 मार्च 1931 के दिन शहीद भगत सिंह को अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया गया था।
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Bhagat singh

Shaheed-e-Azam Bhagat Singh was a revolutionary and martyr, born on 27 September 1907 at the village of Banga, Lyallpur district (now in Pakistan) the second son of Kishan Singh and Vidya Vati. Bhagat Singh was imbued from childhood with the family's spirit of patriotism. At the time of his birth, his father was in jail for his connection with the Canal Colonization Bill agitation, in which his brother, Ajit Singh (Bhagat Singh's uncle), took a leading part.


भगत सिंह एक प्रखर देशभक्त और अपने सिद्धान्तों से किसी भी कीमत पर समझौता न करने वाले बलिदानी थे। भगतसिंह के जो प्रत्यक्ष योगदान है उसके कारण भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष में उनका कद इतना उच्च है कि उन पर अन्य कोई संदिग्ध विचार धारा थोंपना कतई आवश्यक नहीं है। भगतसिंह ने देश की आज़ादी के लिए जिस साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया, वह आज के युवकों के लिए एक बहुत बड़ा आदर्श है।
Bhagat singh House


भगत सिंह (संधू जाट) का जन्म 1907 में किशन सिंह और विद्यावती के घर चाल नंबर 105, जीबी, बंगा ग्राम, जरंवाला तहसील, ल्याल्लापुर जिला, पंजाब में हुआ, जो ब्रिटिश कालीन भारत का ही एक प्रान्त था। उनके पूर्वजों का ग्राम खटकर कलां था, जो नवाशहर, पंजाब (अभी इसका नाम बदलकर शहीद भगत सिंह नगर रखा गया है) से कुछ ही दूरी पर था। भगत सिंह शहादत के समय एक 23 वर्ष के युवक ही थे। 

उस काल में 1920 के दशक में भारत के ऊपर दो प्रकार की विपत्तियाँ थीं। 1921 में परवान चढ़े खिलाफत के मुद्दे को कमाल पाशा द्वारा समाप्त किये जाने पर कांग्रेस एवं मुस्लिम संगठनों की हिन्दू-मुस्लिम एकता ताश के पत्तों के समान उड़ गई और सम्पूर्ण भारत में दंगों का जोर आरंभ हो गया। हिन्दू मुस्लिम के इस संघर्ष को भगत सिंह द्वारा आज़ादी की लड़ाई में सबसे बड़ी अड़चन के रूप में महसूस किया गया, जबकि इन दंगों के पीछे अंगे्रजों की फूट डालो और राज करो की नीति थी। इस विचार मंथन का परिणाम यह निकला कि भगत सिंह को "धर्म" नामक शब्द से घृणा हो गई। उन्होंने सोचा कि दंगों का मुख्य कारण धर्म है।

उनकी इस मान्यता को दिशा देने में मार्क्सवादी साहित्य का भी योगदान था, जिसका उस काल में वे अध्ययन कर रहे थे। दरअसल धर्म दंगों का कारण ही नहीं था, दंगों का कारण मत-मतान्तर की संकीर्ण सोच थी। धर्म पुरुषार्थ रुपी श्रेष्ठ कार्य करने का नाम है, जो सार्वभौमिक एवं सर्वकालिक है। जबकि मत या मज़हब एक सीमित विचारधारा को मानने के समान हैं, जो न केवल अल्पकालिक हैं अपितु पूर्वाग्रह से युक्त भी हैं। उसमें उसके प्रवर्तक का सन्देश अंतिम सत्य होता है। मार्क्सवादी साहित्य की सबसे बड़ी कमजोरी उसका धर्म और मज़हब शब्द में अंतर न कर पाना है।

1919 में, जब वे केवल 12 साल के थे, सिंह जलियांवाला बाग़ में हजारो निःशस्त्र लोगों को मारा गया। भगत सिंह ने कभी महात्मा गांधी के अहिंसा के तत्व को नहीं अपनाया, उनका यही मानना था की स्वतंत्रता पाने के लिए अहिंसा पर्याप्त नहीं है। वे हमेशा से गांधीजी के अहिंसा के अभियान के पक्ष धर नहीं थे। उनके अनुसार 1922 के चौरी चौरा कांड में मारे गये ग्रामीण लोगो के पीछे का कारण अहिंसक होना ही था। भगत सिंह ने कुछ युवायो के साथ मिलकर क्रान्तिकारी अभियान की शुरुवात की जिसका मुख्य उदेश्य हिसक रूप से ब्रिटिश राज को खत्म करना था।

भगत सिंह के अनुसार साम्राज्यवादियों को गद्दी से उतारने के लिए भारत का एकमात्र हथियार श्रमिक क्रान्ति है। उन्होंने क्रांति का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा है- "जनता के लिए जनता का राजनीतिक शक्ति हासिल करना ही वास्तव ‘क्रान्ति’ है, बाकी सभी विद्रोह तो सिर्फ मालिकों के परिवर्तन द्वारा पूँजीवादी सड़ाँध को ही आगे बढ़ाते हैं। किसी भी हद तक लोगों से या उनके उद्देश्यों से जतायी हमदर्दी जनता से वास्तविकता नहीं छिपा सकती, लोग छल को पहचानते हैं। भारत में हम भारतीय श्रमिक के शासन से कम कुछ नहीं चाहते।" 


Sardar Bhagat Singh



इन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की I भगत सिंह जी महात्मा गांधी जी से प्रेरित होकर उनके असहयोग आंदोलन में कूद गये I बाद मैं वे क्रांतिकारियों से मिल गये और देश को आजाद कराने में जुट गये I 30 अक्टूबर 1928 को साइमन कमीशन के विरोध में लाहौर में लोग नारे लगा रहे थे तो अंग्रेजो ने लोगों पर डण्डे चलाये जिसमें लाला लाजपतराय जी की मौत हो गयी I
इनकी मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह और उनके दोस्तों ने स्कॉट सांडर्स को गोलियों से भून दिया I उसके बाद भगत सिंह रूप बदल कर कंही और चले गये I फिर भगत सिंह ने लोकसभा में बम फेंका, पर बम ऐसी जगह फेंका कि किसी को चोट न लगे I फिर इन्होने असेंबली में पर्चे फेंके और इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाये I
इनको पकड़ लिया गया और 1931 को भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव तीनो को फांसी दे दी गयी I इससे सारा देश भड़क उठा और जनता ने अंग्रेजो के विरुद्ध विद्रोह कर दिया I इनकी शहादत रंग लायी और 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया और उस स्थान पर भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव तीनो की समाधियां बना दी गई I आज भी लोग वंहा पर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं I


लोगो का प्यार आज इस कदर बढ़ चुका है , के वो आज कल अपने देश के रूपये पर भी भगत सिंह की फोटो चाहते हैं , उन्होंने इसे अपनी इक मुहीम बना राखी  है ,.
Bhagat singh Rupees note
 


भगत सिंह के क्रांतिकारी विचार

राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है मैं एक ऐसा पागल हूँ जो जेल में भी आज़ाद है.
यदि बहरों को सुनना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा. जब हमने बम गिराया तो हमारा धेय्य किसी को मारना नहीं थ. हमने अंग्रेजी हुकूमत पर बम गिराया था . अंग्रेजों को भारत छोड़ना चाहिए और उसे आज़ाद करना चहिये.

किसी को “क्रांति ” शब्द की व्याख्या शाब्दिक अर्थ में नहीं करनी चाहिए। जो लोग इस शब्द का उपयोग या दुरूपयोग करते हैं उनके फायदे के हिसाब से इसे अलग अलग अर्थ और अभिप्राय दिए जाते है.

ज़रूरी नहीं था की क्रांति में अभिशप्त संघर्ष शामिल हो। यह बम और पिस्तौल का पंथ नहीं था.

आम तौर पर लोग चीजें जैसी हैं उसके आदि हो जाते हैं और बदलाव के विचार से ही कांपने लगते हैं। हमें इसी निष्क्रियता की भावना को क्रांतिकारी भावना से बदलने की ज़रुरत है.

 जो व्यक्ति भी विकास के लिए खड़ा है उसे हर एक रूढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी , उसमे अविश्वास करना होगा तथा उसे चुनौती देनी होगी.

I emphasize that I am full of ambition and hope and of full charm of life. But I can renounce all at the time of need, and that is the real sacrifice.
मैं इस बात पर जोर देता हूँ कि मैं महत्त्वाकांक्षा , आशा और जीवन के प्रति आकर्षण से भरा हुआ हूँ. पर मैं ज़रुरत पड़ने पर ये सब त्याग सकता हूँ, और वही सच्चा बलिदान है.


पूज्य पिता जी, नमस्ते! 

मेरी ज़िंदगी भारत की आज़ादी के महान संकल्प के लिए दान कर दी गई है। इसलिए मेरी ज़िंदगी में आराम और सांसारिक सुखों का कोई आकर्षण नहीं है। आपको याद होगा कि जब मैं बहुत छोटा था, तो बापू जी (दादाजी) ने मेरे जनेऊ संस्कार के समय ऐलान किया था कि मुझे वतन की सेवा के लिए वक़्फ़ (दान) कर दिया गया है। लिहाज़ा मैं उस समय की उनकी प्रतिज्ञा पूरी कर रहा हूं। उम्मीद है आप मुझे माफ़ कर देंगे।

आपका ताबेदार,
भगत सिंह



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